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#day4 दानवीर वही श्रेष्ठ है, जो निस्वार्थ भाव से दान करता हो – पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज

#day4 दानवीर वही श्रेष्ठ है, जो निस्वार्थ भाव से दान करता हो - पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज

आज कथा में कवि गौरव चौहान जी ने शामिल होकर व्यासपीठ का आशीर्वाद प्राप्त किया एवं कथा पंडाल में उपस्तिथ भक्तों अपनी उत्कृष्ट कविता के माध्यम से सनातनियों को सनातन धर्म के प्रति जागरूक किया।

कथा के चतुर्थ दिवस पर भक्तिमय वातावरण में अपार श्रद्धा और उल्लास के साथ भगवान श्रीकृष्ण का दिव्य जन्मोत्सव मनाया गया। संकीर्तन, मंगलगान और जयकारों से पूरा परिसर भक्ति और प्रेमरस से सराबोर हो गया।

आज की कथा में पूज्य महाराज श्री ने बताया कि सनातन धर्म में देवियों का जो सम्मान है, वह किसी अन्य धर्म में देखने को नहीं मिलता। यहाँ देवी को केवल पूज्य नहीं माना जाता, बल्कि उन्हें साक्षात शक्ति, सृजन, और करुणा का प्रतीक माना जाता है। हमारे धर्म में नारी को देवी का स्वरूप माना गया है। यही कारण है कि शक्ति की आराधना के बिना कोई भी अनुष्ठान पूर्ण नहीं होता। 

दानवीर वही श्रेष्ठ है, जो निस्वार्थ भाव से दान करता हो। बलवान वही श्रेष्ठ है, जो धर्म की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहे। ज्ञानवान वही श्रेष्ठ है, जिसके ज्ञान से धर्म का संवर्धन हो। और सच्चा भक्त वही है, जिसकी भक्ति से धर्म और संस्कृति का उत्थान हो। श्रेष्ठता केवल शक्ति या संपत्ति में नहीं, बल्कि उन गुणों में है जो समाज और धर्म की रक्षा और उत्थान में सहायक हों।

हर सनातनी को अपने दिन की शुरुआत सूर्य देव को अर्घ्य देकर करनी चाहिए, क्योंकि सूर्य केवल प्रकाश ही नहीं, बल्कि जीवन और ऊर्जा के स्रोत भी हैं। सनातन धर्म में सूर्य उपासना का विशेष महत्व है। प्रतिदिन प्रातःकाल सूर्योदय के समय तांबे के पात्र में जल लेकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देना अत्यंत शुभ और लाभकारी माना जाता है।

सनातन संस्कृति में दान की परंपरा को अत्यंत पवित्र और पुण्यकारी माना गया है, और उसमें भी अन्नदान को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। इसे प्राणदान भी कहा जाता है, क्योंकि जब हम किसी भूखे को भोजन कराते हैं, तो उसके हृदय से जो आशीर्वाद निकलता है, वह जीवन में सुख, समृद्धि और शांति लाने में सहायक होती है।

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