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#day2 सबूत नहीं सत्य के आधार पर हो न्याय- पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज

#day2 सबूत नहीं सत्य के आधार पर हो न्याय- पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज

कथा के दौरान पूज्य महाराज श्री ने भक्तों को बताया कि दूसरों के उत्कर्ष को देखकर कभी जलन नहीं करनी चाहिए, बल्कि प्रसन्न होना चाहिए, क्योंकि जो लोग दूसरों की प्रगति में खुशी अनुभव करते हैं, भगवान स्वयं उन्हें प्रसन्नता प्रदान करते हैं। 

श्रीमद्भागवत कथा की महिमा इतनी अद्भुत और अलौकिक है कि इसका केवल श्रवण ही नहीं, बल्कि स्मरण, मनन और चिंतन तक प्रेत जैसी नीच योनियों का भी कल्याण कर सकता है। पुराणों और शास्त्रों में अनेकों प्रसंग मिलते हैं जहां भागवत कथा श्रवण मात्र से प्रेत, पिशाच, भूत-प्रेत, बेताल जैसी योनियों में पड़े हुए जीवों को भी परम गति प्राप्त हो गई।

श्रीकृष्ण को एकादशी का व्रत अत्यंत प्रिय है, अतः हर सनातनी को इसे अवश्य करना चाहिए। साथ ही यह भी कहा कि हमें कभी भी नीच और झूठ बोलने वालों का संग नहीं करना चाहिए, क्योंकि उनका संग व्यक्ति को पतन की ओर ले जाता है।

हमारे देश का कानून सबूतों के आधार पर न्याय देता है, जबकि न्याय तो सत्य के आधार पर होना चाहिए। क्योंकि सबूत बनाए जा सकते हैं, गढ़े जा सकते हैं, मिटाए जा सकते हैं, लेकिन सत्य को कोई बदल नहीं सकता। सत्य तो वही रहेगा, चाहे पूरी दुनिया उससे मुंह मोड़ ले। 

अगर हमारे देश में न्याय सत्य के आधार पर मिलने लगे तो मथुरा में कब का भगवान श्रीकृष्ण का भव्य मंदिर बन गया होता, क्योंकि यह तो निर्विवाद सत्य है कि मथुरा ही श्रीकृष्ण की जन्मभूमि है, वहां ही उनका अवतार हुआ था, यह बात बच्चा-बच्चा जानता है, इसे कोई झुठला नहीं सकता। 

जिस दिन सनातन बोर्ड का निर्माण हो जाएगा, और देश के सभी मंदिर उस बोर्ड के अधीन आ जाएंगे। तो उनके पास जो अपार धन-संपत्ति, दान और संसाधन हैं, उनका उपयोग मानवता की सेवा, सनातन के उत्थान, गौसेवा, निशुल्क भोजन वितरण, विद्यालय, धर्मशाला, गरीब कन्याओं के विवाह, असहाय रोगियों की चिकित्सा, वृक्षारोपण, और समाज के कमजोर वर्ग के उत्थान जैसे भलाई के कार्यों में होगा।

पढ़े-लिखे लोग, जो स्वयं को बहुत ज्ञानी और बुद्धिमान समझते हैं, वे ही धर्म के वास्तविक स्वरूप को नहीं समझ पाते, जबकि गांव की अनपढ़ बुजुर्ग महिलाएं, जो कभी स्कूल तक नहीं गईं, उनके हृदय में धर्म, भक्ति, करुणा, सेवा और जीवन का सच्चा ज्ञान बसता है। 

जब बच्चे बचपन से कथा सुनेंगे, धर्म को समझेंगे, भगवान की लीलाओं, मर्यादाओं और उपदेशों को जानेंगे, तभी उनके भीतर संस्कार आएंगे। तभी वे अपने माता-पिता का सम्मान करेंगे, अपने बड़ों का आदर करेंगे, गुरुजनों की सेवा करेंगे। 

यदि हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे आलसी न बने, व्यर्थ के विचारों और बुरी संगत में न जाएं, तो हमें अपने घरों में भजन, कथा, सत्संग, और प्रभु स्मरण को फिर से जीवित करना होगा। तभी हमारे घर में प्रेम, आनंद, और सकारात्मकता का वातावरण बनेगा और हमारे बच्चे धर्मनिष्ठ, कर्मयोगी, और जीवन में सफल बनेंगे। 

अगर हम पढ़े-लिखे नहीं भी हैं, अनपढ़ हैं, लेकिन हमारा स्वभाव निर्मल, सरल, विनम्र, और प्रेम से भरा हुआ है तो भगवान स्वयं हमें अपनाने के लिए दौड़े चले आते हैं। भगवान को हमारे पढ़े-लिखे होने से, हमारी डिग्रियों से, हमारे बड़े-बड़े पदों और पैसों से कोई लेना-देना नहीं है। 

श्रीमद भागवत कथा का भव्य आयोजन
दिनांक – 02 से 08 जुलाई 2025
कथा समय: दोपहर 2 बजे से 5 बजे तक
कथा स्थल: सिद्ध पीठ वंशीवट महारास स्थल एवं नित्य गोचारण लीला स्थल श्री दामा जी मन्दिर, ग्राम छाहरी, मांट (मथुरा)

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