#day 5 हमें धर्म की रक्षा के लिए आवश्यकता पड़ने पर अपने प्राणों की आहुति देने से भी पीछे नहीं हटना चाहिए- पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज
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sonu
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#day 5 हमें धर्म की रक्षा के लिए आवश्यकता पड़ने पर अपने प्राणों की आहुति देने से भी पीछे नहीं हटना चाहिए- पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज
कथा से पूर्व पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने बृज की 125 बेटियों को ‘प्रियाकान्त जू कन्या विद्याधन’ प्रदान किया गया । इस विशेष अवसर पर लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला जी की धर्मपत्नी श्रीमती अमिता बिरला जी ने अपनी गरिमामयी उपस्थिति दर्ज कराई।
कथा के दौरान पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कि धन-संपत्ति कितनी भी अधिक हो, उसे कोई भी चुरा सकता है, लेकिन शिक्षा एक ऐसी अमूल्य संपदा है, जिसे कोई भी चोरी नहीं कर सकता। इसलिए हमें जीवन में हमेशा शिक्षित बनने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि शिक्षा ही जीवन को सफल और सार्थक बनाती है।
संस्कार धन से नहीं खरीदे जा सकते, बल्कि परिवार और समाज के वातावरण में ही मनुष्य के भीतर विकसित होते हैं। इसलिए माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दें और उन्हें एक सच्चरित्र जीवन जीने की प्रेरणा दें।
यदि कभी आवश्यकता पड़े, तो हमें अपने प्राणों की आहुति देकर भी धर्म की रक्षा करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जो लोग अपने छोटे-छोटे स्वार्थों के लिए अपने धर्म का अपमान करते हैं, वे कभी भी प्रगति नहीं कर सकते। धर्म की रक्षा ही सच्ची मानवता है और जो व्यक्ति अपने धर्म के प्रति निष्ठावान रहता है, वही सच्चे अर्थों में जीवन में सफलता प्राप्त करता है।
धर्म के विषय में जो भी ज्ञान प्राप्त करें, उसे अपनी आने वाली पीढ़ियों को भी दें। इससे सनातन संस्कृति और परंपराओं की रक्षा हो सकेगी। जब धरती पर अधर्म और पाप बढ़ जाता है, तब भगवान स्वयं अवतरित होकर धर्म की पुनः स्थापना करते हैं। यही श्रीमद्भगवद्गीता का भी संदेश है कि भगवान समय-समय पर धर्म रक्षा के लिए अवतार लेते हैं।
भगवान के पास हमें हमेशा मन से सुंदर बनकर जाना चाहिए। बाहरी सौंदर्य का कोई मूल्य नहीं होता, बल्कि मन की पवित्रता ही भगवान को प्रिय होती है।
यदि कोई व्यक्ति वास्तव में भगवान से मिलना चाहता है, तो उसे शास्त्रों के अनुसार जीवन जीना होगा। केवल धार्मिक क्रियाकलापों को करने से नहीं, बल्कि शास्त्रों में बताए गए मार्ग का पालन करने से ही ईश्वर की सच्ची भक्ति प्राप्त होती है।
हमें जीवन में उन्हीं बातों को मान्यता देनी चाहिए, जो हमारे आचार्यों द्वारा बताई गई हैं। आचार्य कभी भी गलत नहीं बोलते, क्योंकि वे शास्त्रों और ईश्वर के आदेशानुसार जीवन का मार्गदर्शन करते हैं। उनका प्रत्येक उपदेश हमें सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।