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#day1 बंगाल में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों पर क्यों चुप है समाज- पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज

#day1 बंगाल में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों पर क्यों चुप है समाज- पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज

आज कथा में महाराज श्री ने कहा कि जिसने भी अपने जीवन में भगवान को सच्चे हृदय से पुकारा है, उसने उस दिव्य आनंद की अनुभूति की है। वह आनंद कोई बाहरी वस्तु नहीं, बल्कि हमारे ही भीतर छिपा है। भगवान उस स्रोत का नाम है, जहाँ से यह अनंत शांति और सुख प्रवाहित होता है। इसलिए कहा गया है – “भगवान आनंद का सागर हैं।” उसमें डूब जाना ही मोक्ष है, उसमें विलीन हो जाना ही सच्चा जीवन है।

मानव जीवन में संतों का दर्शन और भगवान की कथा का श्रवण सबसे दुर्लभ और महान कृपा है। यह केवल भाग्यशाली लोगों को ही प्राप्त होता है। संसार में धन, पद और प्रतिष्ठा का होना कोई विशेष बात नहीं है, क्योंकि ये सब नश्वर हैं। वास्तव में महत्वपूर्ण है – धर्म के मार्ग पर चलना, अपने कर्तव्यों का पालन करना और जीवन को आध्यात्मिक दिशा में मोड़ना।

आज के समय में हम में से बहुत से लोग भक्ति को भी अपनी सुविधा और पसंद के हिसाब से करने लगे हैं। भक्ति का अर्थ है समर्पण – अपने अहंकार, इच्छाओं और पसंद-नापसंद को छोड़कर भगवान के चरणों में झुक जाना। लेकिन आजकल हम भक्ति में भी ‘चॉइस’ लाने लगे हैं। भगवान कोई वस्तु नहीं हैं, जो हमारी मर्ज़ी के अनुसार बदलें। भक्ति का अर्थ है उनकी इच्छा को समझना, न कि अपनी इच्छा उन पर थोपना।

आज का युग तेज़ी से बदल रहा है – तकनीक ने जीवन को आसान बना दिया है, लेकिन इसी रफ्तार में हमारी संस्कृति, परंपराएं और जीवन मूल्य पीछे छूटते जा रहे हैं। दुख की बात ये है कि इस बदलाव का सबसे बड़ा असर हमारे बच्चों पर पड़ रहा है – और ज़िम्मेदार हैं आज के माँ-बाप, जो अपनी भूमिका को समझ ही नहीं पा रहे। माँ-बाप का पहला धर्म है अपने बच्चों को संस्कार देना, उन्हें जीवन के सही मूल्य सिखाना – जैसे सच्चाई, ईमानदारी, बड़ों का सम्मान, और छोटे-बड़ों के प्रति करुणा। लेकिन अब बच्चों को मोबाइल तो दिया जा रहा है, संस्कार नहीं।

आज का मानव अपने माता-पिता का आदर नहीं करता। जब बच्चे पढ़-लिख जाते हैं, आत्मनिर्भर बनते हैं, तब वे अपने जीवनदाताओं का ही तिरस्कार करने लगते हैं। ऐसी शिक्षा का क्या लाभ, जो हमें अपने मां-बाप का सम्मान करना न सिखाए? यह शिक्षा नहीं, केवल सूचनाओं का भंडार है। सच्ची शिक्षा वही है जो संस्कार दे, चरित्र निर्माण करे और परिवार, संस्कृति व समाज से जोड़ कर रखे।

महाराज श्री ने बंगाल और बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर हो रहे अत्याचारों पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि बंगाल में महिलाओं और बच्चियों के साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार को किसी भी सूरत में सहन नहीं किया जा सकता। वहां की मुख्यमंत्री से उन्होंने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा देने की मांग की और पूछा कि राज्य सरकार आखिर कब तक मूकदर्शक बनी रहेगी।

उन्होंने यह भी कहा कि बांग्लादेश में भी हिंदू समाज पर हमले लगातार बढ़ रहे हैं, और यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए गंभीर चिंता का विषय है। मानवाधिकारों के पक्षधर अब कहां हैं? क्या किसी विशेष वर्ग के लिए ही अधिकारों की बात होती है? 

श्रीमद भागवत कथा का भव्य आयोजन
दिनांक: 21 से 27 अप्रैल, 2025
कथा समय: शाम 4 बजे से 7 बजे तक
कथा स्थल: सिद्ध श्री देवी मंदिर, पानीपत, हरियाणा

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