#DAY 4 माता-पिता और गुरु के आशीर्वाद के बिना जीवन में सफलता प्राप्त नहीं हो सकती- पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज
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sonu
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#DAY 4 माता-पिता और गुरु के आशीर्वाद के बिना जीवन में सफलता प्राप्त नहीं हो सकती- पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज
आज की कथा के दौरान पूज्य महारज श्री ने बताया कि जीवन में मानव को कभी क्रोध नहीं करना चाहिए, क्योंकि क्रोध एक ऐसी अग्नि है जो सबसे पहले स्वयं को जलाती है और फिर दूसरों को नुकसान पहुंचाती है। इसलिए जीवन में धैर्य और शांति को अपनाना आवश्यक है, ताकि हम सदा सुखमय जीवन व्यतीत कर सकें।
तीन लोगों—भक्त, ब्राह्मण और साधु—का कभी भी अपमान नहीं करना चाहिए। भक्त भगवान का सच्चा सेवक होता है, ब्राह्मण ज्ञान और धर्म का प्रतीक होता है, और साधु त्याग एवं तपस्या की मूर्ति होता है। इन तीनों का अपमान करने से व्यक्ति पाप का भागी बनता है और उसके जीवन में दुखों का आगमन हो सकता है।
कथा में भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव को भी धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर भजन-कीर्तन और धार्मिक अनुष्ठान किए गए। कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण ने सदैव धर्म की रक्षा के लिए कार्य किया और उनके जीवन से हमें सच्चाई, न्याय, प्रेम और कर्तव्यपरायणता का पाठ सीखना चाहिए।
किसी भी परिस्थिति में स्त्री का अपमान नहीं करना चाहिए। हमारे धर्मग्रंथों में भी कहा गया है कि जहां नारी का सम्मान होता है, वहां देवताओं का वास होता है। स्त्री को सृजन का रूप माना जाता है, इसलिए समाज को सदैव उनके सम्मान की रक्षा करनी चाहिए।
प्रत्येक सनातनी को अपने धर्म की रक्षा करनी चाहिए। सनातन धर्म केवल एक पद्धति नहीं, बल्कि एक जीवनशैली है जो हमें सत्य, अहिंसा, प्रेम और करुणा का मार्ग दिखाती है। हमें अपने धर्म की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए और अपनी आने वाली पीढ़ियों को भी धर्म और संस्कृति से जोड़कर रखना चाहिए।
सत्य को परेशान किया जा सकता है, लेकिन वह कभी पराजित नहीं होता। असत्य चाहे कितना भी प्रभावशाली लगे, अंततः सत्य की ही विजय होती है। इस सत्य का पालन करने से जीवन में स्थिरता और आत्मिक संतोष प्राप्त होता है।
मंत्रों के बिना संसार का संचालन संभव नहीं है। वेदों और शास्त्रों में बताया गया है कि सम्पूर्ण सृष्टि मंत्रों के प्रभाव से संचालित होती है। मंत्रों में एक अद्भुत शक्ति होती है, जो न केवल हमारे मन को शुद्ध करती है, बल्कि वातावरण को भी सकारात्मक ऊर्जा से भर देती है।
हमें कभी भी किसी का अपमान नहीं करना चाहिए, क्योंकि अपमान से न केवल सामने वाला व्यक्ति आहत होता है, बल्कि यह हमारे स्वयं के कर्मों पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है। दूसरों को सम्मान देना ही सच्ची मानवता है। जब हम दूसरों का सम्मान करते हैं, तो हमें भी समाज में आदर और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।
भगवान हर जगह विद्यमान हैं। जब भी कोई भक्त सच्चे हृदय से भगवान को पुकारता है, तो भगवान उसकी रक्षा के लिए प्रकट होते हैं। पहले के समय में भक्तों की भक्ति इतनी दृढ़ होती थी कि भगवान स्वयं उनके समक्ष प्रकट होकर उनकी सहायता करते थे।
आज का मानव भगवान के अस्तित्व को मानने में संकोच करता है। जब तक हमारे जीवन में सत्संग का प्रवेश नहीं होगा, तब तक हम सत्य के मार्ग को नहीं पहचान पाएंगे। सत्संग ही वह माध्यम है, जो हमें भगवान के प्रति आस्था और विश्वास दिलाता है।
अपने बच्चों को कथा सुनवानी चाहिए, क्योंकि शास्त्रों में लिखी गई बातें न केवल उन्हें जीवन का सही मार्ग दिखाती हैं, बल्कि उनके चरित्र निर्माण में भी सहायक होती हैं। धर्म, नीति, संस्कार और आदर्शों की शिक्षा बच्चों को तभी मिलेगी, जब वे धार्मिक कथाओं को सुनेंगे और उनसे प्रेरणा लेंगे।
माता-पिता और गुरु का स्थान भगवान से कम नहीं होता। वे ही हमारे सच्चे मार्गदर्शक होते हैं, जो हमें सही राह दिखाते हैं और जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। हमें हमेशा उनका आदर करना चाहिए, उनकी सेवा करनी चाहिए और उनकी आज्ञा का पालन करना चाहिए।
माता-पिता और गुरु के आशीर्वाद के बिना जीवन में सच्ची सफलता प्राप्त नहीं हो सकती। उनका सम्मान ही हमारा कर्तव्य है, और उनकी सेवा ही सच्ची भक्ति है। जब हम अपने माता-पिता और गुरु की आज्ञा का पालन करेंगे, तो निश्चित ही हमारा जीवन सुखमय और मंगलमय होगा।
श्रीमद् भागवत कथा भव्य आयोजन
दिनांक- 19 से 25 मार्च 2025
कथा स्थल : गाँव – कोपरिया पोस्ट – कोपरिया, जिला – सहरसा, बिहार