#day3 जिस व्यक्ति का हृदय निर्मल, विचार शुद्ध और स्वभाव विनम्र होता है, वही वास्तव में सुंदर कहलाने योग्य होता है- पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज

आज की कथा के दौरान पूज्य महाराज श्री ने भक्तों को बताया कि जिन घरों में मांस, शराब, व्यभिचार और दुर्व्यवहार जैसे अधार्मिक कृत्य होते हैं, उन घरों में कलयुग का प्रभाव गहराई से प्रवेश कर जाता है। जब किसी घर में कलयुगी प्रवृत्तियाँ पनपती हैं, तो वहां मानसिक अशांति, कलह, बीमारी और विघटन जैसे परिणाम स्वतः ही उत्पन्न हो जाते हैं। ऐसा घर धीरे-धीरे पतन की ओर अग्रसर होता है।
हिंदू और सनातन धर्म की रक्षा के लिए “सनातन बोर्ड” का गठन अत्यंत आवश्यक है, जो धर्म, शिक्षा, संस्कृति और समाज को एकजुट रखेगा और आने वाली पीढ़ियों के लिए सनातन मूल्यों की रक्षा करेगा।
आजकल कुछ सनातनी, आध्यात्मिक लाभ की लालसा में भूत-प्रेत और नकारात्मक शक्तियों की पूजा तक करने लगे हैं। यह सनातन धर्म के मूल सिद्धांतों के विपरीत है। सनातन धर्म हमेशा सत्य, प्रकाश और ईश्वर की भक्ति की ओर अग्रसर करता है, न कि अंधविश्वास और तामसिक प्रवृत्तियों की ओर।
यदि एक पिशाच योनि में पड़े धुंधकारी का उद्धार भागवत कथा के श्रवण मात्र से हो सकता है, तो आज के मनुष्य का कल्याण क्यों नहीं हो सकता? भगवान के नाम, कथा और मंत्रों में इतनी शक्ति है कि वे व्यक्ति को अज्ञानता, पाप और दुःखों से उबार सकते हैं।
मंत्र जाप और भक्ति में इतनी ताकत होती है कि वह स्वयं भगवान को भी अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम होता है। जिस प्रकार अर्जुन ने कुरुक्षेत्र में धर्म की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण के निर्देशों पर खड़ा होकर धर्म युद्ध लड़ा, वैसे ही आज के समय में हर सनातनी को अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए सजग रहना होगा।
सुख-दुख जीवन के स्वाभाविक अंग हैं और इनका आना-जाना प्रकृति का नियम है। इसलिए हर मनुष्य को मानसिक रूप से इन उतार-चढ़ावों के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए। जो व्यक्ति इन दोनों को समान भाव से स्वीकार करता है, वही सच्चा ज्ञानी और संतुलित जीवन जीने वाला होता है।
हमारी जिंदगी में प्रतिदिन क्या होगा, किससे मिलेंगे, क्या खोएंगे और क्या पाएंगे — यह सब भगवान की लीला का ही भाग है। हमारे कर्मों का प्रभाव भी हमारे जीवन पर पड़ता है। इसलिए नियति के साथ-साथ हमें अच्छे कर्म करने चाहिए ताकि हमारा जीवन दिशा और उद्देश्य से भरपूर रहे।
आज बहुत से स्कूलों में बच्चों को हाथ में कलावा बाँधने और माथे पर तिलक लगाने से रोका जा रहा है। यह अत्यंत चिंताजनक और हमारी संस्कृति के अपमान के समान है। हर माता-पिता का यह कर्तव्य बनता है कि वे ऐसे स्कूलों में जाकर इसका विरोध करें और अपने बच्चों को धर्म से जुड़ी पहचान के साथ आगे बढ़ने का अधिकार दिलवाएँ।
सच्चा सौंदर्य तन से नहीं, मन और व्यवहार से होता है। शरीर की सुंदरता क्षणिक होती है—वह समय, उम्र और परिस्थितियों के साथ बदल जाती है। लेकिन एक सुंदर मन और सुसंस्कृत व्यवहार सदा स्थायी होते हैं। जिस व्यक्ति का हृदय निर्मल, विचार शुद्ध और स्वभाव विनम्र होता है, वही वास्तव में सुंदर कहलाने योग्य होता है।
श्रीमद् भागवत कथा का भव्य आयोजन
दिनांक – 9 से 15 जून 2025
स्थान – श्री गंगोत्री धाम, उत्तराखंड
समय – प्रात: 10 बजे से दोपहर 1 बजे तक

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