#day 2 देश में जब आदि गुरु शंकराचार्य जैसी महान विभूति को गिरफ्तार किया गया और सनातनी मूकदर्शक बना रहा - पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज

कथा के दौरान पूज्य महाराज श्री ने भक्तों को बताया कि जब मानव नियमित रूप से सत्संग सुनता है, तो उसकी बुद्धि शुद्ध होती है और उसे अपने जीवन को सही दिशा में ले जाने की प्रेरणा मिलती है।

हमारे देश में जब आदि गुरु शंकराचार्य जैसी महान विभूति को गिरफ्तार किया गया, तो यह केवल एक व्यक्ति पर आघात नहीं था, बल्कि यह सनातन संस्कृति और परंपरा पर भी आघात था। यह अत्यंत दुखद और चिंतनीय है कि जिस देश में संतों और ऋषियों को सबसे ऊँचा स्थान दिया गया है, वहाँ उन्हीं पर अन्याय किया जाता है और सनातनी मूकदर्शक बना रहता है।

तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसाद में मिलावट की घटना भी हमारी धार्मिक आस्था पर हमला था। लेकिन यह अत्यंत खेदजनक है कि जब इस पवित्र मंदिर के प्रसाद में मिलावट हुई, तब सनातनी ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। यह स्थिति इस बात को दर्शाती है कि हम अपने धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति कितने उदासीन होते जा रहे हैं।

आज सोशल मीडिया पर धर्मगुरुओं और कथावाचकों की आलोचना करना एक आम प्रवृत्ति बन गई है। कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि कथावाचक लाखों रुपए कमाते हैं, लंबी-लंबी गाड़ियों में चलते हैं, और धर्म की रक्षा के लिए कुछ नहीं करते। लेकिन यह समझने की आवश्यकता है कि धर्मगुरु और कथावाचक केवल उपदेशक नहीं होते, बल्कि वे सनातन को सही दिशा दिखाने का कार्य भी करते हैं। उनका उद्देश्य केवल धन संचय करना नहीं, बल्कि लोगों को धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देना होता है।

हम आज ही सनातन बोर्ड और सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए आवाज उठाना बंद कर दें, तो क्या कोई और इस दायित्व को उठाने के लिए आगे आएगा? इस बात को कोई हमें लिखकर दे दे कि वह सनातन धर्म की रक्षा करेगा, धर्म की रक्षा केवल बड़े मंचों से भाषण देने से नहीं होती, बल्कि इसे व्यक्तिगत जीवन में अपनाने, आस्था को बनाए रखने, और अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने से होती है। ना पद चाहता हूं ना प्रतिष्ठान जाता हूं मैं तो सुरक्षित हिंदुस्तान चाहता हूं ।


सत्संग के माध्यम से हमें धर्म, कर्तव्य और मानवता का वास्तविक ज्ञान प्राप्त होता है, जिससे हम अपनी गलतियों को सुधारकर सद्गुणों को अपनाने का प्रयास करते हैं।

हमें अपने मन और हृदय को भी स्वच्छ रखना चाहिए। मन की शुद्धता से ही हम ईश्वर की कथा का वास्तविक रूप से श्रवण कर सकते हैं और उसका लाभ प्राप्त कर सकते हैं। एक स्वच्छ मन ईश्वर के प्रेम और भक्ति को सहजता से ग्रहण करता है, जिससे जीवन में सकारात्मकता और शांति का संचार होता है।

आज के युग में मोबाइल और इंटरनेट के अत्यधिक प्रयोग ने समाज पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। लोग अपने परिवार और सगे-संबंधियों से दूर होते जा रहे हैं। आज हम अपने घर के सदस्यों को उचित समय नहीं दे पा रहे हैं, जिससे आपसी संबंधों में दूरी बढ़ रही है।

हम मोबाइल और इंटरनेट का सीमित और सकारात्मक उपयोग करें ताकि परिवार और समाज में संतुलन बना रहे।

मानव जीवन में अभिमान पतन का कारण बनता है। विशेष रूप से पांच प्रकार के अभिमान – धन का अभिमान, पद का अभिमान, बल का अभिमान, ज्ञान का अभिमान और किसी भी चीज़ का अत्यधिक अभिमान – व्यक्ति को विनाश की ओर ले जाता है।
अभिमान के कारण व्यक्ति अपने सगे-संबंधियों और समाज से दूर हो जाता है तथा उसके जीवन में दुख और अशांति उत्पन्न होती है। विनम्रता और सादगी से ही व्यक्ति समाज में सम्मान प्राप्त करता है और सच्चे सुख का अनुभव करता है।

आजकल लोग गर्व से कहते हैं कि वे अपने माता-पिता की भी नहीं सुनते, जो कि अत्यंत अनुचित है। माता-पिता का स्थान सर्वोच्च होता है और उनका ऋण कोई भी संतान चुका नहीं सकती।

माता-पिता ने जो त्याग और प्रेम हमें दिया है, उसे समझना और उनकी सेवा करना हमारा परम कर्तव्य होना चाहिए। माता-पिता का आदर और सेवा करने से जीवन में सुख, समृद्धि और आत्मिक शांति प्राप्त होती है।

दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और समाज में सकारात्मकता फैलती है। जब हम निस्वार्थ भाव से किसी की सहायता करते हैं, तो इससे हमारा मन प्रसन्न रहता है और जीवन में आध्यात्मिक उन्नति होती है।

 


होली महोत्सव एवं श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन

दिनांक- 6 से 13 मार्च 2025

समय- दोपहर 2 बजे से

स्थान: ठा. श्रीप्रियाकान्त जू मन्दिर, शान्ति सेवा धाम, वृंदावन

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