नरसी जी जैसी भक्ति होनी चाहिए — निश्छल, निरपेक्ष और पूर्ण समर्पण से भरी हुई। नरसी मेहता जी की भक्ति में न दिखावा था, न कोई स्वार्थ। उन्होंने अपने आचरण से यह सिद्ध किया कि सच्ची भक्ति वही है जिसमें अहंकार का लोप हो जाए और ईश्वर का नाम ही सांसों का आधार बन जाए। उनके लिए सबसे बड़ा सत्य केवल भगवान श्रीकृष्ण थे।

भगवान की कथा और संतों का दर्शन इस जीवन में अत्यंत है। अनेक जन्मों के संचित पुण्य का परिणाम होता है। जब किसी जीव का हृदय पवित्र होता है और उसमें सच्चे धर्म की प्यास जागृत होती है, तभी भगवान उसे संतों के सानिध्य का सौभाग्य प्रदान करते हैं।

कथा हमें भगवान के जीवन, उनके आदर्शों और उनके उपदेशों से जोड़ती है। संसार के कोलाहल में जब मनुष्य मोह-माया, लोभ और अहंकार में उलझ जाता है, तब कथा और सत्संग ही वह साधन बनते हैं जो उसे पुनः ईश्वर की ओर मोड़ते हैं।

जब मनुष्य धर्म के मार्ग पर आगे बढ़ता है, तब कुछ लोग उसे रोकने का प्रयास करते हैं। ऐसे लोग, जो पाप की प्रवृत्ति में फंसे रहते हैं, दूसरों को भी उसी अंधकार में धकेलने का प्रयत्न करते हैं। वे धर्म के कार्यों का उपहास उड़ाते हैं, परंतु जो पुण्यात्मा होते हैं, जो सच्चे हृदय से भगवान को चाहते हैं, वे हमेशा धर्म के कार्यों में सहयोग देते हैं।

आज लोग कथा सुनने के बजाय सिर्फ रील्स देखना पसंद करते हैं। भगवान की कथा केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि आत्मा का आहार है — वह हमारे जीवन का मार्गदर्शन करती है, हमारे भीतर की अशांति को समाप्त करती है और हमें धर्म के सच्चे अर्थ समझाती है।

जीवन में समय सबसे मूल्यवान धन है। जो व्यक्ति अपने समय का सही उपयोग करना जानता है, वही जीवन में सफलता और संतोष प्राप्त करता है। हमें यह समझना चाहिए कि बीता हुआ समय कभी वापस नहीं आता। इसलिए हर क्षण को सार्थक बनाना हमारा कर्तव्य है। समय का सदुपयोग करने वाला व्यक्ति अपने जीवन को न केवल सफल बनाता है बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणा बनता है।

हमें अपने जीवन में सोच-समझकर कार्य करना चाहिए — किन लोगों के साथ समय बिताना है, किन बातों को सुनना और अपनाना है, यह सब बहुत विवेक के साथ तय करना चाहिए। अच्छे और सकारात्मक लोगों के साथ रहना हमारे विचारों और कर्मों को भी अच्छा बनाता है।

हमें केवल भक्त दिखना नहीं है बल्कि भक्त बनना चाहिए। भक्त वह नहीं जो केवल नाम जपे या पूजा के दिखावे करे — सच्चा भक्त वह है जो अपने आचरण में भक्ति को उतारे, जो विनम्रता, करुणा और सत्य के मार्ग पर चले।

हमारा कल्याण हमारे सिवा कोई नहीं कर सकता। जब तक हम स्वयं अपने भीतर परिवर्तन नहीं लाते, तब तक ईश्वर भी हमारी सहायता नहीं कर सकते। कथा सुनना, संतों का संग करना, भक्ति करना — यह सब तभी सार्थक होता है जब हम उनके उपदेशों को अपने जीवन में उतारें।

दिनांक: 2 से 8 नवम्बर 2025

समय: दोपहर 3 बजे से

स्थान: बालासाहेब ठाकरे मैदान, इन्द्रलोक फेज-3, भायंदर, मुंबई

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