पूज्य महाराज श्री कथा से पूर्व देर शाम मुंबई पधारे, जहां भक्तों ने प्रेम और भक्ति से ओतप्रोत होकर महाराज श्री का भव्य स्वागत किया। मुंबई एयरपोर्ट पर बड़ी संख्या में भक्तजन एकत्रित हुए और “जय श्री राधे” के गगनभेदी जयकारों से पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठा।
पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज जब मुंबई की पावन भूमि पर पधारे। उनके आगमन से संपूर्ण वातावरण भक्तिमय हो उठा। भक्तों ने हृदय की गहराइयों से महाराज श्री का भव्य स्वागत किया। कहीं पुष्प वर्षा हो रही थी, कहीं “जय श्री कृष्ण” के जयघोष गूंज रहे थे। पूरे मार्ग को भक्तों ने फूलों की रंगोली से सजाया, दीपों से आलोकित कर दिया। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो स्वयं दीपावली का पर्व उतर आया हो।
इसके पश्चात पूज्य महाराज श्री के पावन सानिध्य में भायंदर (मुंबई) में भव्य कलश यात्रा निकाली गई । इंद्रदेव के आशीर्वाद समान वर्षा के बीच निकली यह यात्रा भक्ति, आनंद और उल्लास का अद्वितीय प्रतीक बनी। महिलाओं ने सिर पर कलश धारण कर अपनी आस्था और परंपरा का अनुपम परिचय दिया, वहीं बैंड-बाजों, ढोल-नगाड़ों और भक्ति गीतों की मधुर ध्वनियों से यात्रा को और भी भव्य बना दिया।
कथा में श्री नरेंद्र मेहता जी ( विधायक मिरा भाईंदर- मुंबई) ने पधारकर व्यासपीठ का आशीर्वाद प्राप्त किया और कथा पंडाल में उपस्थित भक्तों को संबोधित किया।
देश के सभी विद्यालयों में भगवद्गीता और रामायण का अध्ययन अनिवार्य होना चाहिए। इन ग्रंथों के माध्यम से बच्चे अपने जीवन में कर्तव्य, त्याग, मर्यादा और धर्म का महत्व समझेंगे। जब बाल्यावस्था से ही उन्हें सत्य, धर्म और नैतिकता की शिक्षा मिलेगी, तब वे भविष्य में अच्छे नागरिक, जिम्मेदार संतान और आदर्श मनुष्य बनेंगे।
जीवन में छत्रपति शिवाजी महाराज के आदर्शों से सीखना चाहिए — उस वीर पुरुष से, जिसने न केवल एक साम्राज्य की स्थापना की, बल्कि एक पूरी पीढ़ी को धर्म, स्वाभिमान और देशभक्ति का अर्थ समझाया। शिवाजी महाराज ने यह सिद्ध किया कि राष्ट्र के प्रति सच्चा प्रेम केवल शब्दों में नहीं, बल्कि कर्म और बलिदान में झलकता है।
जीवन में सबसे बड़ा दान ज्ञान का दान होता है। क्योंकि धन, संपत्ति, यश या पद—ये सब नश्वर हैं, क्षणभंगुर हैं; परंतु ज्ञान वह अमूल्य निधि है जो एक बार प्राप्त हो जाए तो व्यक्ति के पूरे जीवन को आलोकित कर देती है।
कभी भी किसी कार्य को ‘कल’ पर न टालें। जो कार्य आज किया जा सकता है, उसे तुरंत करने की आदत ही व्यक्ति को ऊँचाइयों तक पहुँचाती है। जो लोग बार-बार “कल कर लेंगे” कहते हैं, वे जीवन के सबसे सुनहरे अवसर खो देते हैं। सफलता उन्हीं के कदम चूमती है जो कर्मठ, तत्पर और दृढ़निश्चयी होते हैं।
हमारे बच्चे अगर बचपन से ही कथा श्रवण करें, वेद-पुराणों का अध्ययन करें, रामायण और श्रीमद्भगवद्गीता पढ़ें, तो हमारे घर कभी नहीं टूटेंगे। यदि बच्चों को बचपन से ही कथा, सत्संग और धर्मग्रंथों का ज्ञान दिया जाए, तो उनमें अच्छे-बुरे का भेद समझने की बुद्धि विकसित होती है, और वे कभी भी अपने माता-पिता का अनादर नहीं करते।
देवउठनी एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु चार माह के योगनिद्रा से जागते हैं और संपूर्ण सृष्टि में फिर से शुभता, गति और मंगल का संचार होता है। जैसे सूर्य के उदय होने पर अंधकार स्वतः मिट जाता है, वैसे ही देवउठनी एकादशी के दिन भगवान की कृपा से अज्ञान, पाप और दुर्भाग्य दूर हो जाते हैं।
महाराज श्री ने बताया कि श्रीमद्भागवत कथा केवल श्रवण का कार्यक्रम नहीं, बल्कि आत्मा का जागरण है — यह मनुष्य को उसके जीवन का वास्तविक उद्देश्य समझाती है। उन्होंने कहा कि जब मनुष्य संसार के मोह, लोभ, क्रोध और अहंकार से मुक्त होकर भगवान के चरणों में समर्पित होता है, तभी उसका जीवन सफल होता है।
कथा हमें यह सिखाती है कि जीवन का सार धन, पद या प्रतिष्ठा में नहीं, बल्कि प्रेम, भक्ति और सेवा में छिपा है। जो व्यक्ति कथा को श्रद्धा से सुनता है, उसके जीवन में एक दिव्य परिवर्तन आता है — जैसे अंधकार में दीपक का प्रकाश राह दिखाता है, वैसे ही भागवत कथा अज्ञान रूपी अंधकार को दूर कर ज्ञान और मोक्ष का प्रकाश देती है।
दिनांक: 2 से 8 नवम्बर 2025
समय: दोपहर 3 बजे से
स्थान: बालासाहेब ठाकरे मैदान, इन्द्रलोक फेज-3, भायंदर, मुंबई