कथा में श्री पंकज गुप्ता जी (विधायक उन्नाव सदर) एवं श्री अरुण पाठक जी (सदस्य विधान परिषद उत्तर प्रदेश) ने कथा में पधारकर व्यासपीठ का आशीर्वाद प्राप्त किया और कथा पंडाल में उपस्थित भक्तों को अपने प्रेरणादायी विचारों से संबोधित किया।

पूज्य महाराज श्री ने कहा कि सर्वेश्वरी श्री राधा रानी के गुणों का वर्णन कोई नहीं कर सकता, क्योंकि वे स्वयं प्रेम और करुणा की मूर्ति हैं। उनके चरणों की महिमा इतनी अनंत है कि उसे शब्दों में बांधना असंभव है। जो व्यक्ति भगवान के उत्सवों में सम्मिलित होता है, उनका नाम सच्चे मन से जपता है और भक्ति के भाव से भगवान की आराधना करता है, भगवान स्वयं उसके अनेकों जन्मों के पापों का नाश कर देते हैं।

अपने शहर और मंदिर को स्वच्छ रखना हमारा कर्तव्य है। जिस प्रकार विदेशों में लोग स्वच्छता का विशेष ध्यान रखते हैं और वहाँ के मंदिर व गलियाँ साफ-सुथरी रहती हैं, उसी प्रकार हमें भी अपने देश, अपने नगर और अपने मंदिरों को स्वच्छ रखना चाहिए। स्वच्छता केवल बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक भी होनी चाहिए — मन, वचन और कर्म से भी शुद्धता बनाए रखना ही सच्ची भक्ति है।

पूज्य महाराज श्री ने पुतना प्रसंग का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि भगवान ने पुतना को मारा नहीं उन्होंने उसका उद्धार किया। जिसने भगवान को विष पिलाने का प्रयास किया, भगवान ने उसे मुक्ति का वरदान दे दिया। यही भगवान श्रीकृष्ण की करुणा और दया का प्रमाण है।

कथा में उपस्थित भक्तों ने गिरिराज भगवान की परिक्रमा की। गिरिराज भगवान की परिक्रमा के समय भक्तों का उत्साह अद्भुत था हर कोई श्रीकृष्ण और गिरिराज महाराज के जयकारों से गूंज उठा। भक्ति की ऐसी लहर उठी कि भक्त महाराज श्री के भजनों पर झूमते, नाचते और भाव-विभोर दिखाई दिए।

भगवान स्वयं कहते हैं मुझे छल, कपट, दिखावा या बाहरी आडंबर से कोई प्राप्त नहीं कर सकता। भगवान के निकट वही पहुँच सकता है जिसका मन निर्मल हो, भाव सच्चा हो और जिसका हृदय भक्ति से भरा हो। भगवान कपट से नहीं, सच्चे प्रेम और समर्पण से प्रसन्न होते हैं। इसलिए जीवन में हमें हमेशा सच्चे मन से भगवान की सेवा, नाम-स्मरण और भक्ति करनी चाहिए।

भगवान सदैव अपने भक्तों के संकटों को हरने वाले हैं। जो भक्त श्रद्धा और विश्वास के साथ प्रभु का नाम लेते हैं, उनके जीवन से दुख, भय और क्लेश स्वतः दूर हो जाते हैं। भक्ति का सबसे बड़ा लक्षण है — समर्पण, और समर्पण वहीं संभव है जहां प्रेम और विश्वास हो।

जीवन में हमें अपने माता-पिता का सदैव सम्मान करना चाहिए, क्योंकि वे ही हमारे पहले गुरु हैं। उनके आशीर्वाद के बिना कोई भी सफलता स्थायी नहीं होती। माता-पिता की सेवा ही सच्चे धर्म का पहला चरण है।

श्रीमद्भभागवत कथा का भव्य आयोजन

दिनांक: 24 से 30 अक्टूबर 2025

समय: दोपहर 2:30 बजे से शाम 6 बजे तक

स्थान – मोतीझील ग्राउंड कानपुर, उत्तरप्रदेश

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