सेल्फी खींचना ही है अपने फेस की नहीं अपने कर्मों का सेल्फी खींचो
सेल्फी खींचना ही है अपने फेस की नहीं अपने कर्मों का सेल्फी खींचो…
तुम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हो, लेकिन इसके लिए तुम्हे सत्संग में आना पड़ेगा – पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी
विश्व शांति सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट के तत्वावधान में पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज के पावन सानिध्य में 27 जनवरी 02 फरवरी 2023 तक स्थान – 9, प्रिंसेस श्राइन, पैलेस ग्राउंड, बैंगलोर में श्रीमद भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है।
श्रीमद् भागवत कथा के षष्ठम दिवस पर महाराज श्री ने पुतना उद्धार, कृष्ण रुक्मिणी विवाह एवं श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का सुंदर वर्णन भक्तों को श्रवण कराया। कथा के षष्ठम दिवस पर सभी भक्तों ने महाराज जी के श्रीमुख से कथा का श्रवण किया।
भागवत कथा के षष्ठम दिवस की शुरुआत भागवत आरती और विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई।
पूज्य श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी महाराज ने कथा पंडाल में बैठे सभी भक्तों को भजन ” प्रेम रस जिसने पिया, श्री राधे के नाम का” श्रवण कराया।
पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा की शुरूआत में कहा कि कितनी सेल्फी खींच लो एक दिन तो डिलीट कर दोंगे क्यों और न्यू आ जाएंगी फोटोज खींचना है फेस का नहीं अपने कर्मों का फोटो खींचो आनंद आ जायेगा। यहाँ बैठकर आप जो कथा सुन रहे हो ये आपके कर्मों का फोटो खींच रहा है और ये बहुत ब्यूटीफुल फोटो आएगा जो भी देखेगा इस फोटो को इम्प्रेस हो जायेगा आपसे देवता भी इम्प्रेस हो जायेंगे। फोटो दूसरों को इम्प्रेस करने के लिए ही तो खींचते है भगवान प्रसन्न हो जाये इससे अच्छा और क्या है तुम जो कथा सुन रहे हो यहाँ बैठकर ये जो फोटो पूरी मूवी बन रही है तुम्हारे कैरेक्टर से ठाकुर जी बहुत इम्प्रेस हो रहे है। तुम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हो, लेकिन इसके लिए तुम्हे सत्संग में आना पड़ेगा.
महाराज श्री ने कथा क्रम बढ़ाते हुए कहा कि एक विषय जो हमारे जीवन का नित्य का ही परम हिस्सा है भोजन छोड़ सकते लेकिन उस विषय को नहीं छोड़ सकते वस्त्र। हम लोग वस्त्र धारण करते है वस्त्र की पवित्रता और अपवित्रता का बहुत बड़ा ध्यान रखना चाहिए किस स्थिति में कौन से वस्त्र हम सबके लिए महत्वपूर्ण होते है। हम लोग समझते है जो धुलकर आये है ड्राइक्लीन होकर आये है वस्त्र वो सबसे पवित्र है शुद्ध है लेकिन सही मायने में वही सबसे अशुद्ध है जो वस्त्र धुलकर आये है विद्वान लोग दूसरों के हाथ से धुले हुए वस्त्रों को कभी शुद्ध नहीं मानते अशुद्ध मानते है। इसलिए किसी के द्वारा भी धुले हुए वस्त्रो पर जब तक आप जल न छिड़को तब तक वो वस्त्र नहीं पहनने चाहिए भगवान का नाम लेकर उन वस्त्रों पर जल छिड़कना चाहिए इसके बाद वो वस्त्र शुद्ध हो जाते है और शुद्ध वस्त्र पहनकर शुभ कार्य करना चाहिए।
द्वितीय एक वस्त्र धारण करके किसी को स्त्री पुरुष पुरुषों को न तो भोजन करना चाहिए न यज्ञ करना चाहिए और न अग्नि को आहुति देनी चाहिए न स्वाध्य करना चाहिए और नाही पितरों के निमित कोई शुभ कार्य करना चाहिए एक वस्त्र धारण करके न तो भोजन करें न यज्ञ करें न भजन करें न पितरों का कोई शुभ कार्य करें। जिन वस्त्रों की मर्यादा है उन वस्त्रों को पहनकर ही शुभ कार्य करना चाहिए। उन शुभ कार्यों को करने से ही श्रेष्ठ फल की प्राप्ति होती है।
पूज्य देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज जी ने कथा का वृतांत सुनाते हुए कहा कि बिना साधना के भगवान का सानिध्य नहीं मिलता। द्वापर युग में गोपियों को भगवान श्री कृष्ण का सानिध्य इसलिए मिला, क्योंकि वे त्रेता युग में ऋषि – मुनि के जन्म में भगवान के सानिध्य की इच्छा को लेकर कठोर साधना की थी। शुद्ध भाव से की गई परमात्मा की भक्ति सभी सिद्धियों को देने वाली है। जितना समय हम इस दुनिया को देते हैं, उसका 5% भी यदि भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लगाएं तो भगवान की कृपा निश्चित मिलेगी। पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कहा कि गोपियों ने श्री कृष्ण को पाने के लिए त्याग किया परंतु हम चाहते हैं कि हमें भगवान बिना कुछ किये ही मिल जाये, जो की असम्भव है। महाराज श्री ने बताया कि शुकदेव जी महाराज परीक्षित से कहते हैं राजन जो इस कथा को सुनता हैं उसे भगवान के रसमय स्वरूप का दर्शन होता हैं। उसके अंदर से काम हटकर श्याम के प्रति प्रेम जाग्रत होता हैं। जब भगवान प्रकट हुए तो गोपियों ने भगवान से 3 प्रकार के प्राणियों के विषय में पूछा। 1 . एक व्यक्ति वो हैं जो प्रेम करने वाले से प्रेम करता हैं। 2 . दूसरा व्यक्ति वो हैं जो सबसे प्रेम करता हैं चाहे उससे कोई करे या न करे। 3 . तीसरे प्रकार का प्राणी प्रेम करने वाले से कोई सम्बन्ध नही रखता और न करने वाले से तो कोई संबंध हैं ही नही। आप इन तीनो में कोनसे व्यक्ति की श्रेणियों मेंआते हो?
भगवान ने कहा की गोपियों! जो प्रेम करने वाले के लिए प्रेम करता हैं वहां प्रेम नही हैं वहां स्वार्थ झलकता हैं। केवल व्यापर हैं वहां। आपने किसी को प्रेम किया और आपने उसे प्रेम किया। ये बस स्वार्थ हैं। दूसरे प्रकार के प्राणियों के बारे में आपने पूछा वो हैं माता-पिता, गुरुजन। संतान भले ही अपने माता-पिता के , गुरुदेव के प्रति प्रेम हो या न हो। लेकिन माता-पिता और गुरु के मन में पुत्र के प्रति हमेशा कल्याण की भावना बनी रहती हैं। लेकिन तीसरे प्रकार के व्यक्ति के बारे में आपने कहा की ये किसी से प्रेम नही करते तो इनके 4 लक्षण होते हैं- आत्माराम- जो बस अपनी आत्मा में ही रमन करता हैं। पूर्ण काम- संसार के सब भोग पड़े हैं लेकिन तृप्त हैं। किसी तरह की कोई इच्छा नहीं हैं। कृतघ्न – जो किसी के उपकार को नहीं मानता हैं। गुरुद्रोही- जो उपकार करने वाले को अपना शत्रु समझता हैं। श्री कृष्ण कहते हैं की गोपियों इनमे से मैं कोई भी नही हूँ। मैं तो तुम्हारे जन्म जन्म का ऋणियां हूँ। सबके कर्जे को मैं उतार सकता हूँ पर तुम्हारे प्रेम के कर्जे को नहीं। तुम प्रेम की ध्वजा हो। संसार में जब-जब प्रेम की गाथा गाई जाएगी वहां पर तुम्हे अवश्य याद किया जायेगा।
श्रीमद् भागवत कथा के सप्तम दिवस द्वारिका लीला, सुदामा चरित्र, परीक्षित मोक्ष, व्यास पूजन पूर्णाहुति का वृतांत सुनाया जाएगा।
|| राधे राधे बोलना पड़ेगा ||