भगवान की बाल लीलाएं सुनने से भगवान के श्री चरणों में प्रेम उत्पन्न होता है…
भगवत प्रेम के बिना मनुष्य जीवन सफल नहीं होगा – पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज
विश्व शांति सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट के तत्वावधान में पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज के पावन सानिध्य में 27 जनवरी 02 फरवरी 2023 तक स्थान – 9, प्रिंसेस श्राइन, पैलेस ग्राउंड, बैंगलोर में श्रीमद भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है।
श्रीमद् भागवत कथा के पंचम दिवस पर महाराज श्री ने पुतना उद्धार एवं श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का सुंदर वर्णन भक्तों को श्रवण कराया। कथा के पंचम दिवस पर सभी भक्तों ने महाराज जी के श्रीमुख से कथा का श्रवण किया।
भागवत कथा के पंचम दिवस की शुरुआत भागवत आरती और विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई।
पूज्य श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी महाराज ने कथा पंडाल में बैठे सभी भक्तों को भजन “अपनी धुन में रहता हूँ राधे राधे कहता हूँ” श्रवण कराया”।
पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा की शुरुआत करते हुए कहा कि भगवान की बाल लीलाएं सुनने से भगवान के श्री चरणों में प्रेम उत्पन्न होता है और मनुष्य जीवन की सफलता इसी में है की हमें भगवान से प्रेम हो जाये। संसार से तो है ही भगवान से प्रेम हो जाये ये महत्वपूर्ण है और भगवान की कथाओं के बगैर आपको भगवान से प्रेम नहीं हो सकता भगवान की कथाएं ही है हमें भगवान के श्री चरण कमलों तक ले जाती है इसीलिए नित्य भगवान की कथाओं का सेवन श्रवण हमको करना चाहिए ऐसा हमारे वेद व्यास जी महाराज कहते है।
जब आप भक्ति करने जाओंगे भगवान को पाने जाओंगे हजार प्रकार के लोग आपको रोकेंगे लेकिन जब लोगो की परवाह करोगे तो भक्ति कभी नहीं कर सकोगे और जब सिर्फ अपनी धून लगा लोगे अपना मन लगा लोंगे तो ठाकुर से मिले बगैर रह नहीं सकोगे। उसके लिए परफेक्ट भक्ति चाहिए।
महाराज जी ने कहा की प्रत्येक गृहस्थी को इस बात को सीखना चाहिए कभी भी किसी भी समय घर में कोई भी भोजन बने डायरेक्ट उस भोजन को कभी भी घर वालों को नहीं करना चाहिए कोई वस्तु आप अपने घर में बनाते है तो भगवान को समर्पित किये बगैर कोई भोजन हमको नहीं ग्रहण करना चाहिए।
एकादशी अमावस्य पूर्णिमा इन दिनों में एकादशी के व्रत को छोड़ दिया जाये और अमावस्य और पूर्णिमा में विशेष व्यंजन बनाने चाहिए। जैसे खीर बनाने चाहिए पुये बनाने चाहिए और इसका भोग कुछ जगह पर लगाना चाहिए जैसे की देवता और पितरों को अर्पित अवश्य करना चाहिए।
हम लोग बहुत जल्दी पैसे वाले बन जाते है बहुत जल्दी नीचे आ जाते है उसके पीछे वजह यही है की हमारे घरो में देवता और पितरों की पूजा नहीं हो पाती है इसलिए पूर्व जन्म के कर्म थे तुम्हे पैसा मिलना था तो मिल गया उसे तो टाला नहीं जा सकता क्योंकि प्रारब्ध था तुम्हारा तो उसे टाला नहीं जा सकता लेकिन इस जन्म में तुम्हारे कर्म अच्छे नहीं रहे इसलिए वो ज्यादा देर टिका नहीं मिल गया प्रारब्ध पूरा हो गया और ख़त्म भी हो गया इसलिए अमावस्य और पूर्णिमा के दिन घर में मालपुआ खीर इत्यादि बड़े – बड़े स्वादिष्ट व्यंजन बनाने चाहिए देवताओं को और पितरों को अवश्य अर्पण करना चाहिए।
पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने पंचम दिवस की कथा प्रारंभ करते हुए कृष्ण जन्म पर नंद बाबा की खुशी का वृतांत सुनाते हुए कहा की जब प्रभु ने जन्म लिया तो वासुदेव जी कंस कारागार से उनको लेकर नन्द बाबा के यहाँ छोड़ आये और वहाँ से जन्मी योगमाया को ले आये। नंद बाबा के घर में कन्हैया के जन्म की खबर सुन कर पूरा गोकुल झूम उठा। महाराज ने कथा का वृतांत बताते हुए पूतना चरित्र का वर्णन करते हुए कहा की पुतना कंस द्वारा भेजी गई एक राक्षसी थी और श्रीकृष्ण को स्तनपान के जरिए विष देकर मार देना चाहती थी। पुतना कृष्ण को विषपान कराने के लिए एक सुंदर स्त्री का रूप धारण कर वृंदावन में पहुंची थी। जब पूतना भगवान के जन्म के ६ दिन बाद प्रभु को मारने के लिए अपने स्तनों पर कालकूट विष लगा कर आई तो मेरे कन्हैया ने अपनी आँखे बंद कर ली, कारण क्या था? क्योकि जब एक बार मेरे ठाकुर की शरण में आ जाता है तो उसका उद्धार निश्चित है। परन्तु मेरे ठाकुर को दिखावा, छलावा पसंद नहीं, आप जैसे हो वैसे आओ। रावण भी भगवान श्री राम के सामने आया परन्तु छल से नहीं शत्रु बन कर, कंस भी सामने शत्रु बन आया पर भगवान ने उनका उद्दार किया। लेकिन जब पूतना और शूपर्णखा आई तो प्रभु ने आखे फेर ली क्योंकि वो मित्र के भेष रख कर शत्रुता निभाने आई थी। मौका पाकर पुतना ने बालकृष्ण को उठा लिया और स्तनपान कराने लगी। श्रीकृष्ण ने स्तनपान करते-करते ही पुतना का वध कर उसका कल्याण किया।
महाराज जी ने कहा संतो ने कई भाव बताए है कि भगवान ने नेत्र बंद किस लिए किए ? इसका तो नाम ही है पूतना, इसके तो पूत है ही नहीं, कितना अशुभ नाम है पूतना। एक ओर भाव है कि इसे किसी के पूत पसंद भी नहीं हैं इसलिए बच्चों को मारने जाती है।
भगवान जो भी लीला करते हैं वह अपने भक्तों के कल्याण या उनकी इच्छापूर्ति के लिए करते हैं। श्रीकृष्ण ने विचार किया कि मुझमें शुद्ध सत्त्वगुण ही रहता है, पर आगे अनेक राक्षसों का संहार करना है। अत: दुष्टों के दमन के लिए रजोगुण की आवश्यकताहै। इसलिए व्रज की रज के रूप में रजोगुण संग्रह कर रहे हैं। पृथ्वी का एक नाम ‘रसा’ है। श्रीकृष्ण ने सोचा कि सब रस तो ले चुका हूँ अब रसा (पृथ्वी) रस का आस्वादन करूँ। पृथ्वी का नाम ‘क्षमा’ भी है। माटी खाने का अर्थ क्षमा को अपनाना है। भगवान ने सोचा कि मुझे ग्वालबालों के साथ खेलना है,किन्तु वे बड़े ढीठ हैं। खेल-खेल में वे मेरे सम्मान का ध्यान भी भूल जाते हैं। कभी तो घोड़ा बनाकर मेरे ऊपर चढ़ भी जाते हैं। इसलिए क्षमा धारण करके खेलना चाहिए।
अत: श्रीकृष्ण ने क्षमारूप पृथ्वी अंश धारण किया। भगवान व्रजरज का सेवन करके यह दिखला रहे हैं कि जिन भक्तों ने मुझे अपनी सारी भावनाएं व कर्म समर्पित कर रखें हैं वे मेरे कितने प्रिय हैं। भगवान स्वयं अपने भक्तों की चरणरज मुख के द्वारा हृदय में धारण करते हैं। पृथ्वी ने गाय का रूप धारण करके श्रीकृष्ण को पुकारा तब श्रीकृष्ण पृथ्वी पर आये हैं। इसलिए वह मिट्टी में नहाते, खेलते और खाते हैं ताकि पृथ्वी का उद्धार कर सकें। अत: उसका कुछ अंश द्विजों (दांतों) को दान कर दिया। गोपबालकों ने जाकर यशोदामाता से शिकायत कर दी–’मां ! कन्हैया ने माटी खायी है।’ उन भोले-भाले ग्वालबालों को यह नहीं मालूम था कि पृथ्वी ने जब गाय का रूप धारणकर भगवान को पुकारा तब भगवान पृथ्वी के घर आये हैं। पृथ्वी माटी,मिट्टी के रूप में है अत: जिसके घरआये हैं उसकी वस्तु तो खानी ही पड़ेगी। इसलिए यदि श्रीकृष्ण ने माटी खाली तो क्या हुआ? ‘बालक माटी खायेगा तो रोगी हो जायेगा’ ऐसा सोचकर यशोदामाता हाथ में छड़ी लेकर दौड़ी आयीं। उन्होंने कान्हा का हाथ पकड़कर डाँटते हुये कहा–‘क्यों रे नटखट ! तू अब बहुत ढीठ हो गया है।
श्रीकृष्ण ने कहा–‘मैया ! मैंने माटी कहां खायी है।’ यशोदामैया ने कहा कि अकेले में खायी है। श्रीकृष्ण ने कहा कि अकेले में खायी है तो किसने देखा? यशोदामैया ने कहा–ग्वालों ने देखा। श्रीकृष्ण ने मैया से कहा–’तू इनको बड़ा सत्यवादी मानती है तो मेरा मुंह तुम्हारे सामने है। तुझे विश्वास न हो तो मेरा मुख देख ले।’‘अच्छा खोल मुख।’ माता के ऐसा कहने पर श्रीकृष्ण ने अपना मुख खोल दिया। भगवान के साथ ऐश्वर्यशक्ति सदा रहती है। उसने सोचा कि यदि हमारे स्वामी के मुंह में माटी निकल आयी तो यशोदामैया उनको मारेंगी और यदि माटी नहीं निकली तो दाऊ दादा पीटेंगे। इसलिए ऐसी कोई माया प्रकट करनी चाहिए जिससे माता व दाऊ दादा दोनों इधर-उधर हों जाएं और मैं अपने स्वामी को बीच के रास्ते से निकाल ले जाऊं। श्रीकृष्ण के मुख खोलते ही यशोदाजी ने देखा कि मुख में चर-अचर सम्पूर्ण जगत विद्यमान है। आकाश, दिशाएं, पहाड़, द्वीप,समुद्रों के सहित सारी पृथ्वी, बहने वाली वायु, वैद्युत, अग्नि, चन्द्रमा और तारों के साथ सम्पूर्ण ज्योतिर्मण्डल, जल, तेज अर्थात्प्रकृति, महतत्त्व, अहंकार, देवगण, इन्द्रियां, मन, बुद्धि, त्रिगुण, जीव, काल, कर्म, प्रारब्ध आदि तत्त्व भी मूर्त दीखने लगे। पूरा त्रिभुवन है, उसमेंजम्बूद्वीप है, उसमें भारतवर्ष है, और उसमें यह ब्रज, ब्रज में नन्दबाबा का घर, घर में भी यशोदा और वह भी श्रीकृष्ण का हाथ पकड़े। बड़ा विस्मय हुआ माता को। अब श्रीकृष्ण ने देखा कि मैया ने तो मेरा असली तत्त्व ही पहचान लिया।
श्रीमद् भागवत कथा के षष्ठम दिवस पर उद्धव चरित्र, रूक्मिणी विवाह, रास पंचाध्यायी का वृतांत सुनाया जाएगा।