कथा में पूज्य महाराज श्री ने गोपाष्टमी के शुभ अवसर पर गौ माता का पूजन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। गौमाता में 33 कोटि देवी-देवताओं का वास माना जाता है। गोपाष्टमी के दिन गौमाता की पूजा करने से सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे घर में सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
कथा में पूज्य महाराज श्री ने कार्यकर्ताओं को कंबल वितरण किया और सभी को प्रेरित किया कि वे अपने समाज में सेवा कार्यों को निरंतर जारी रखें। सेवा भाव ही जीवन को सार्थक बनाता है।
देश में, जहाँ गाय को माता कहा जाता है, वहीं सबसे अधिक मांस गौ माता का ही बिकता है। उन्होंने दृढ़ स्वर में कहा कि “गाय की हत्या नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह हमारे धर्म, हमारी संस्कृति और हमारी मानवता के विरुद्ध है।” उन्होंने समाज से आह्वान किया कि हर व्यक्ति गाय की रक्षा के लिए आगे आए ।
जब-जब पृथ्वी पर अधर्म बढ़ता है और धर्म कमजोर होता है, तब-तब भगवान स्वयं इस सृष्टि में अवतरित होते हैं। भगवान का आगमन हमेशा धर्म की रक्षा और अधर्म के विनाश के लिए होता है। इसलिए हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि धर्म की रक्षा केवल भगवान का कार्य नहीं, बल्कि हर भक्त का भी कर्तव्य है।
सनातन धर्म की रक्षा के लिए सनातन बोर्ड का निर्माण होना चाहिए। यह बोर्ड सनातन धर्म, संस्कृति, और संस्कारों की रक्षा करेगा। मथुरा मे भगवान श्रीकृष्ण का भव्य मंदिर बनना चाहिए — जो सनातन आस्था और अखंड भारत का प्रतीक बने।
हमारे बच्चे अगर बचपन से ही कथा श्रवण करें, वेद-पुराणों का अध्ययन करें, रामायण और श्रीमद्भगवद्गीता पढ़ें, तो हमारे घर कभी नहीं टूटेंगे। यदि बच्चों को बचपन से ही कथा, सत्संग और धर्मग्रंथों का ज्ञान दिया जाए, तो उनमें अच्छे-बुरे का भेद समझने की बुद्धि विकसित होती है, और वे कभी भी अपने माता-पिता का अनादर नहीं करते।
भगवान कृष्ण ने दीनहीन सुदामा जी को गले लगाया। सुदामा जी जब अपने बालसखा श्रीकृष्ण से मिलने द्वारका पहुंचे, तब भगवान ने उन्हें देखकर आनंद और प्रेम से भर गए। श्रीकृष्ण ने सुदामा को अपने गले से लगा लिया वह आलिंगन केवल मित्रता का प्रतीक नहीं था, बल्कि यह संदेश था कि भगवान अपने भक्त के प्रेम को सबसे ऊपर रखते हैं, चाहे वह कितना भी निर्धन क्यों न हो।
जब हम सच्चे मन से धर्म का पालन करेंगे, तभी भारत एक सशक्त हिंदू राष्ट्र के रूप में उभर सकेगा। धर्म का पालन करना केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि उसमें सत्य, करुणा, निष्ठा और सेवा का भाव होना आवश्यक है।
हमारे द्वार पर आने वाला हर व्यक्ति भगवान का अंश होता है। इसलिए हमें उसके प्रति प्रेम, आदर और सेवा का भाव रखना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि “जो व्यक्ति शरण में आए, उसका त्याग नहीं करना चाहिए,क्योंकि सच्चा धर्म वही है जो दीन-दुखियों की सेवा में प्रकट होता है।”
श्रीमद्भभागवत कथा का भव्य आयोजन
दिनांक: 24 से 30 अक्टूबर 2025
समय: दोपहर 2:30 बजे से शाम 6 बजे तक
स्थान – मोतीझील ग्राउंड कानपुर, उत्तरप्रदेश